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पंचतंत्र: दो सिर वाला जुलाहा

Do Sir Wala Julaha panchtantra Story In Hindi

एक समय एक गाँव में मंथरक नाम का जुलाहा अपने परिवार के साथ रहता था। मंथरक बहुत ही कुशल कारीगर था। एक बार उसके कुछ उपकरण जिससे वह कपड़ा बुनता था, वह टूट गए। उपकरणों को पुनः बनाने के लिए उसे बहुत ही मजबूत लकड़ी की जरूरत थी। जुलाहा लकड़ी काटने के लिए समुंद्र तट के पास वाले वन में चला गया।

बहुत तलाशने के बाद, समुद्र तट के पास एक पेड़ देखा जिसकी टहनियां काफी मजबूत थी। मंथरक ने सोचा इस पेड़ की टहनियों से मेरे सभी उपकरण गुनाह बन जाएंगे।

जैसे ही मंथरक उस पेड़ को कुल्हाड़ी से काटने लगा। तभी उस पेड़ पर बैठे देव ने कहा “रुको- मैं इस पेड़ पर बैठा समुंद्र की हवाओं का आनंद ले रहा हूं। तुम्हें इस पेड़ को नहीं काटना चाहिए। जो लोग दूसरों का सुख छीनते हैं, वह कभी जीवन में सुखी नहीं रह सकते।” फिर हरे भरे पेड़ को अभी नहीं काटना चाहिए।

जुहाला बोला “मैं भी आपकी बात से सहमत हूँ, पर इस कार्य को करने के लिए विवश हूं क्योंकि मेरे सारे उपकरण टूट चुके हैं। उन्हें बनाने के लिए मुझे लकड़ी की आवश्यकता है।

यदि मैं अपने उपकरण जल्दी नहीं बना पाया तो तो मेरा परिवार भूखा मर जाएगा, मेरी विनती हैं, की आप आप किसी दूसरे पेड़ पर आश्रय ले लो।”

मंथरक की विनम्रता देखकर देव प्रसन्न हो गए और बोले “मैं तुम्हारे उत्तर से प्रसन्न हुआ। तुम मेरे से एक वर मांग लो और इस पेड़ को मत काटो।”

मंथरक ने कुछ देर सोचा और कहा “आप मुझे वर मांगने के लिए कुछ समय दीजिए, मैं अपनी पत्नी और मित्र की सलाह लेकर वर मंगूगा।”

देव ने कहा “मैं कल तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा।”

मंथरक अपने मित्र नाई से मिला और मंथरक ने अपने मित्र को सारी बात बात दी। मित्र! मुझे एक देव ने वरदान मागने को कहा है, मैं तुमें पूछने आया हू कि मुझे क्या वरदान मांगना चाहिए।”

नाई ने कहा कि ऐसी बात है तो तुम देव से एक राज्य मांग लो, हम राजा तथा मैं तुम्हारा मंत्री बन जाऊंगा और हम दोनो सुखी जीवन व्यतीत करेंगे।

मंथरक ने इस बात पर अपनी पत्नी की सलाह लेने की इच्छा जाहिर की तो उसके मित्र ने कहा कि जैसे तुम्हें उचित लगे, पर में तुम्हारी पत्नी की जनता हूँ, वह बिना सोचे समझे ही कुछ भी बोल देती हैं। तुम सोच समझ कर देव के पास जाना।

मंथरक ने नाई की बात नहीं मानी और अपनी पत्नी के पास जाकर इस बात की सलाह ली। मंथरक ने पत्नी से कहा की “मुझे आज एक देव ने एक वरदान मांगने के लिए कहा है। मैंने अपने मित्र नाई से सलाह ली तो उसने मुझे एक राज्य मांगने की सलाह दी है।“

अब तुम बताओ मैं उस देव से क्या वरदान मांगू?

पत्नी ने कहा “राज्य चलाना कोई आसान बात नहीं होती है। उसमें हर वक्त कष्ट ही रहता है। राजा बनकर तुम खुच नहीं रहोगे।

मंथरक ने मन ही मन सोच, राजा बनकर कौन बिना वजह की मुसीबत ले, क्योंकि राज्य के साथ बहुत सारी जिम्मेदारी भी आती हैं।

पत्नी ने कहा “तुम दो हाथों से जितना कपड़ा बुनते हो। उससे जो धनराशि हमें प्राप्त होती है, वह तो हमारे घर के कार्यों में ही लग जाती हैं। यदि तुम्हारे दो हाथ की जगह चार हाथ हो और एक सिर की बजाय दो सिर हो तो तुम दुगुना कपड़ा बुन पाओगे। जिससे हमारे पास बहुत अधिक धन हो जायेगा। जिसके पास धन होता है, समाज में उसकी कदर होती है।”

मंथरक को उसकी पत्नी की सलाह पसंद आ गई। वह देव के पास गया और बोला “हे देव! आप मेरे को वरदान दो कि मेरे दो सिर और चार हाथ हो जाए।”

देव ने मंथरक को एक बार फिर सोचने की सलाह दी। पर मंथरक नहीं माना। देव ने मंथरक को वरदान दे दिया।

जब मंथरक दो सिर तथा चार हाथ के साथ गांव में आया तो लोगों ने उसे राक्षस समझ लिया, बच्चे उसे देख रोने लगे, सभी गाँव वाले उस पर टूट पड़े। लोगों ने उसको पत्थरों से इतना मारा कि वह वहीं मर गया।

मनोहर की लाश देख उसकी पत्नी रोने लगती है और सोचती है कि अगर मैंने गलत सलाह न दी होती तो आज मंथरक को कोई राक्षस न समझता और वे जिंदा होते।

कहानी से सीख :

बिना सोचे-समझे दूसरों के परामर्श पर चलने वाले का यही हश्र होता है

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