HomeHindi Storyतेनाली रामा: मनहूस कौन

तेनाली रामा: मनहूस कौन

Manhoos Kaun Tenali Rama Story In Hindi

मनहूस चेलाराम

महान राज्य विजय नगर में चेलाराम नाम का एक व्यक्ति रहता था। इसी किसी कारण वश विजय नगर की जनता के मन यह ब्रह्म हो गया कि अगर कोई सुबह-सवेरे उसका चेहरा सबसे पहले देख ले तो उसे दिनभर खाने को कुछ नहीं मिलता।

लोग उसे मनहूस कहकर पुकारते थे। बेचारा चेलाराम इस बात से दुखी तो होता, लेकिन फिर भी अपने काम में लगा रहता।

एक दिन यह बात महाराज कृष्णदेव राय के कानों तक जा पहुंची। राजा इस बात को सुनकर बहुत उत्सुक हुए। वह जानना चाहते थे कि क्या चेलाराम सच में इतना मनहूस है? राजा ऐसी बातों पर यकीन नहीं करते थे, पर अपनी इस उत्सुकता को दूर करने के लिए उन्होंने चेलाराम को महल में आने का न्योता दिया।

महाराज द्वारा चेलाराम को बुलाना

महाराज का बुलावा सुन क चेलाराम खुशी-खुशी महल के लिए चल पड़ा। महल पहुंचने पर जब राजा ने उसे देखा तो वे सोचने लगे कि यह चेलारम तो दूसरों की भांति सामान्य प्रतीत होता है। यह कैसे दूसरे लोगों के लिए मनहूसियत का कारण हो सकता है। महाराज ने सोचा की कल सुबह सबसे पहले मैं इसका चेहरा देखूँगा।

चेलाराम को राजा के कमरे के सामने वाले कमरे में ठहराया गया। महल के नरम बिस्तर, स्वादिष्ट खानपान व राजसी ठाठ-बाठ को देखकर चेलाराम बहुत खुश हुआ। उसने भरपेट खाना खाया और रात को जल्दी ही सो गया।

अगली सुबह राजा कृष्णदेव राय उसे देखने के लिए कमरे में आए। उन्होंने चेलाराम को देखा और चले गए।

संयोगवश ही किसी आवश्यक काम के कारण राजा को सभा के लिए जल्दी जाना पड़ा, इसलिए उन्होंने सुबह का नाश्ता नहीं किया। सभा की बैठक दिन भर इतनी लंबी चली कि सुबह से शाम हो गई, लेकिन राजा को भोजन करने का समय न मिला। थके-हारे, भूखे राजा शाम को भोजन के लिए बैठे ही थे कि परोसे हुए खाने में मक्खी पड़ी देखकर उन्हें बहुत गुस्सा आया व उन्होंने भोजन न करने का निर्णय किया।

भूख व थकान से राजा का बुरा हाल तो था ही, राजा के मन मे विचार आया की यह सब कुछ मनहूस चेलाराम  की वजह से हुआ हैं।

चेलाराम को मृत्युदंड

ऐसे में गुस्से में आकर उन्होंने स्वीकार कर लिया कि वह एक मनहूस व्यक्ति है तथा जो कोई भी सुबह-सुबह उसका चेहरा देख ले तो उसे दिन भर अन्न का एक निवाला भी नसीब नहीं होता।

उन्होंने गुस्से में आकर चेलाराम को मृत्युदंड की सजा सुनाई और कहा कि ऐसे व्यक्ति को राज्य में जीने का कोई अधिकार नहीं है।

तेनालीराम द्वारा चेलाराम को बचाना

जब यह बात चेलाराम को पता चली तो वह भागा-भागा तेनालीराम के पास पहुंचा। उसे मालूम था कि इस सजा से उसे केवल तेनालीराम ही बचा सकते हैं। उसने उन्हें अपनी पूरी व्यथा सुनाई। तेनालीराम ने उसे आश्वासन दिया और कहा कि वह न डरे और जैसा वो कहते हैं बिल्कुल वैसा करे।

अगले दिन फांसी के समय चेलाराम को लाया गया। उससे पूछा गया कि क्या उसकी कोई आखरी इच्छा है? जवाब में चेलाराम ने कहा, हां, वह राजा समेत पूरी प्रजा के सामने कुछ कहने की अनुमति चाहता है।

इतना सुनते ही सभा का एलान किया गया। जब चेलाराम सभा में पहुंचा तो राजा ने उससे पूछा, “बोलो चेलाराम, तुम क्या कहने की अनुमति चाहते हो?”

चेलाराम बोला, “महाराज, मैं केवल यह कहना चाहता हूं कि अगर मैं इतना मनहूस हूं कि जो कोई मुझे सुबह देख ले तो उसे दिन भर भोजन नसीब नहीं होता, तो आप भी मेरी तरह एक मनहूस हैं।”

यह सुन सभी उपस्थित लोग भौचक्के रह गए और राजा की ओर देखने लगे। राजा ने भी क्रोधित स्वर में कहा, “तुम्हारी ये मजाल, तुम ऐसी बात कैसे और किस आधार पर कह सकते हो?”

चेलाराम ने जवाब दिया, “महाराज, उस दिन सुबह सबसे पहले मैंने भी आप ही का चेहरा देखा था और मुझे मृत्युदंड की सजा सुनाई गई। इसका अर्थ तो ये हुआ कि आप भी मनहूस हैं, जो कोई सुबह सबसे पहले आपका चेहरा देख ले उसे मृत्युदंड मिलना तय है।”

चेलाराम की यह बात सुनकर महाराज का गुस्सा शांत हुआ और उन्हें यह एहसास हुआ कि चेलाराम निर्दोष है। उन्होंने शीघ्र ही उसे रिहा करने का आदेश दिया और उससे माफी मांगी। उन्होंने चेलाराम से पूछा कि उसे ऐसा कहने के लिए किसने कहा था?

चेलाराम ने जवाब दिया, “तेनालीराम के अलावा कोई और मुझे इस मृत्युदंड से नहीं बचा सकता था। इसलिए मैंने उनके समक्ष जाकर अपने प्राणों की गुहार लगाई थी।”

यह सुनकर महाराज अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने तेनालीराम की खूब प्रशंसा की। उनकी बुद्धिमानी को देख महाराज ने उन्हें रत्नजड़ित सोने का हार इनामस्वरूप दिया।

कहानी से सीख 

  • तेनालीराम की इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि बिना सोचे-विचारे हमें किसी की भी बातों में नहीं आना चाहिए।
  • अपनी सफलता असफलता के लिए हम स्वयं जिम्मेदार होते हैं, हमे हमेशा प्रयास करते रहना चाहिए।

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