jinnah ki bimari bharat ka batwara
पाकिस्तान प्रस्ताव
चौधरी रहमत अली ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने पहली बार दक्षिण एशिया में एक अलग मुस्लिम देश के लिए “पाकिस्तान” नाम का प्रस्ताव रखा, साल 1932-33 की बात हैं, रहमत अली उन दिनों कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में एक कानून के छात्र थे।
1933 में, लंदन में तीसरा गोलमेज़ सम्मेलन चल रहा था, रहमत अली ने ब्रिटिश और भारतीय प्रतिनिधियों को संबोधित किया, ओर एक पैम्फलेट प्रदर्शित किया, जिसमे लिखा था, “अभी या कभी नहीं; क्या हम हमेशा के लिए जीते हैं या नष्ट हो जाते हैं?”, जिसे बाद में “पाकिस्तान घोषणा” के रूप में जाना गया।
1940 तक रहमत अली के विचारों को किसी भी राजनतिक पार्टी या राजनेता का समर्थन नहीं मिला।
1940 में इस प्रस्ताव को मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में मुस्लिम लीग ने मान लिया और दो राष्ट्र की मांग का प्रस्ताव पास कर दिया। (Lahore resolution or declaration of independence of Pakistan ) पास किया, जिसे तुरंत प्रेस में “पाकिस्तान प्रस्ताव” करार दिया गया।
ऐसा नहीं की यह फैसला एक दिन में आचनक लिया गया था, समय के साथ जिन्ना का रुख एक अलग राष्ट्र के लिए मजबूत होता गया, गांधी जी सहित कई बड़े नेताओ ने जिन्ना को समझाने की कोशिश की, पर 1945 आते आते, अब यह स्पष्ट हो चुका था, की देश का बटवारा होगा।
रहमत आली द्वारा पेश किए गए पाकिस्तान के नक्शे में हैदराबाद, बंगाल का बड़ा हिस्सा, असम तथा आस पास की कई रियासते थी। पर जब एक पाकिस्तान का नक्शा दुनिया के सामने आया, तो किसी की समझ नहीं आया की यह कैसा देश जिसका एक हिस्सा (इतनी दूर था की उसके लिए पूरे भारत और श्रीलंका को समुद्री मार्ग से पार करके जाना पड़ता था।
जिन्ना की बीमारी
बहुत से historian यह सवाल उठाते हैं, की जिन्ना को ऐसी क्या जल्दी थी कि वो ऐसा पाकिस्तान लेने को तैयार हो गया, जो एक ना एक दिन दो भागों में टूटना ही था?
एक मशहूर किताब, “Freedom at Midnight”, written by Dominique Lapierre and Larry Collins, में लेखक लिखते हैं। जिन्ना एक गंभीर बीमारी Tuberculosis (TB) से पीड़ित थे। उन दिनों टीबी का इलाज आसान नहीं था।
जिन्ना के डॉक्टर पटेल उन्हे बता चुके थे, की उनके पास ज्यादा समय नहीं हैं। जिन्ना ने अपनी बीमारी के बारे में किसीको भी नहीं बताया। अब तक यह बात जिन्ना को समझ या चुकी थी, की आजाद भारत का प्रधानमंत्री पद उन्हे नहीं मिलेगा, नेहरू या पटेल में कोई एक ही आजाद भारत का पहला प्रधानमंत्री बनेगा।
जिन्ना यह भी जानते थे, की मुस्लिम लीग में उनके बाद कोई भी ऐसा प्रभावशाली नेता नहीं जो अपनी बात congress के सामने रख सके या पूरी मुस्लिम आबादी में में सर्वमान्य हो।
देश का बटवारा
जिन्ना ने अटपटे बटवारे को स्वीकार कर लिया, तमाम मुस्लिम नेता जो एक बड़े पाकिस्तान का सपने देख रहे थे, उनके लिया यह किसी बुरे सपने से कम नहीं था।
अगर एक देश का सपना देख रहे दोनों पक्षों के राजनेताओ को जिन्ना की इस बीमारी का पता होता, तो निश्चित रूप से बंटवारे के विवाद को लंबा खिच जा सकता था। ओर संभवता देश के टुकड़े नहीं होते।
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