HomeHistoryपानीपत में अब्‍दाली से मराठे क्‍यों हारे।

पानीपत में अब्‍दाली से मराठे क्‍यों हारे।

इतिहास हमेशा जितने वाले का ही सम्मान करता है। ओर हारने वाले की तमाम गलती को बताता है, यही भाऊ के साथ हुआ, जैसे कई इतिहास कर बोलते है, की उन्हे उत्तर भारत का कोई अनुभव नहीं था, महाराज  सुरजमाल को वो अपने साथ नहीं रख सके, विश्वास राव के मारे जाने पर अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख सके, सही समय पर अब्दाली परआक्रमण नहीं किया। पर वास्तव मे जो एक मात्र गलती थी, वो थी, भाऊ का दिल्ली विजय के बाद, तीर्थयात्रियो को आगे लेके जाना, क्योकि जितना मराठे, दिल्ली से आगे जा रहे थे, उतने ही रसद के रास्ते लंबे होते जा रहे थे। अंत मे यही कारण हार की वजह बना, नहीं तो युद्ध के दिन भी मराठो ने अब्दाली का मध्य पूरी तरह तोड़ दिया था, पर तीर्थयात्रियो की सुरक्षा के लिए अंत तक रुके रहे।

मराठो की हार के 7 प्रमुख कारण:

  • अब्दाली को मराठो की कुंजपुरा जीत का ओर कुरुक्षेत्र जाने का समाचार मिला, यह एक सुनहरा अवसर अवसर था, मराठो की रसद को काटने का। ओर हुआ भी यही, लगातार प्रयास करते हुए, अब्दाली, बागपत के पास यमुना पार करने मे सफल हो गया।
  • जिस गुप्तचरी पर मराठो को नाज था, वही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई, अब्दाली को यमुना पार करने मे , २ दिन लगे, पर मराठो को इसका पता बहुत देर से लगा।
  • बहुत से इतिहासकार अब्दाली को एक महान सेनापति, रणनीति कार के रूप मे तारीफ करते है, पर वास्तव मैं ऐसा नहीं था, अब्दाली को इस युद्ध मे पूरे उत्तर भारत के मुस्लिम शाशको का साथ मिला, नजीब, अवध के नवाब सिराजुदौला , रोहिल्लाखंड के सभी छोटे बड़े नवाब, जबकि मराठो क साथ सिर्फ जाट महाराज सुरजमाल ही थे, जोकि दिल्ली जीत के बाद मराठो से कोई समझोता नहीं हो पाने के कारण अलग हो गए थे।
  • २७ नवंबर १७६०, मराठो को सूचना मिली की नजीब पास की किसी मस्जिद मे आने वाला है, मराठो ने आस पास का सारा इलाका घेर लिया, नजीब इस आचानक हुए आक्रमण के लिए तैयार नहीं था, जब लगा की मराठा नजीब को मार देंगे, तभी एक उनहोनी हुई, एक गोली बलवंतराव मेहेंदेले को लगी ओर वो वही मारे गए, मराठो के सबसे बड़े योधा के मारे जाने से, जीती हुई बाजी पलट गई, नजीब बच के भाग निकला , बलवंत, भाऊ साहब का साला था, ओर भाऊ की युद्ध नीति का प्रमुख हिस्सा था, भाऊ बलवंत को प्रमुख युद्ध मे सेना के मध्य मे रखना चाहते थे, भाऊ  अब पूरी तरह टूट चुके थे, ओर कोस रहे थे। की उन्होने पुणे से सेना आने का इंतज़ार ही क्यो किया।
  • अब्दाली ने निशानेबाजो का सही प्रयोग किया, यह पिछले एक साल मे तीसरा मोका था, जब प्रमुख मराठा सरदार गोली लगने से मरे, पहला दत्ताजी सिंधिया , दूसरा बलवंतराव मेहेंदेले , तीसरा विश्वास राव, विश्वर राव के मारे जाते ही, भाऊ हाथी से उतरे, ओर घोड़े पर सवार होकर अब्दाली के दस्तो के काफी अंदर आ गए, उनका साथ देने के लिए ओर भी मराठा सरदार आ गए, उनके साथ हुजुरात की सेना भी थी, मराठो को अचानक इतना आग बड़ते हुए, इब्राहिम खान गार्दी को अपनी तोपों को शांत करना पड़ा, जबकि यहाँ अब्दाली ने अपनी हलकी तोपे, जो को उठों पर रख चलाई जा सकती थी, मराठो पर हमला कर दिया, जिससे मराठो को बहुत नुकसान हुआ।
  • भाऊ को हाथी पर बहुत देर तक न देख , यह बात आग की तरह मराठा खेमे मैं फेल गई,  कुछ उनहोनी हुई जानकार सेना मे भगदड़ मच गई, इसी का फायदा उठाकर, अंताजी मानकेश्वर द्वारा अपनी सेना मे कुंजपुरे मे शामिल मुस्लिम सेना ने पाला बादल लिया, मुस्लिम २००० हजार सेना, सिर्फ तीर्थयारी की सुरक्षा के लिए थी। अब सब तरफ हाहाकार मच गया, मराठो को लगा, की पीछे से अब्दाली की ओर सेना आ गई। होल्कर, अंताजी मानकेश्वर सहित बहुत से वरिष्ठ मराठा सरदार अपनी सेना के साथ युद्ध भूमि से चले गए। होल्कर महाराज के बारे मे  कहाँ जाता है की उन्होने भाऊ के कहने परे ऐसा किया ओर मराठा स्त्रियो को सुरक्षित  निकाल लिया।
  • मराठो ने यह बात मान ली थी, की नवंम्बर से पहले यमुना मे पानी कम नहीं होगा, ओर यमुना के घाटो की पहरेदारी के लिए सैनिक लगा दिए, पर अब्दाली ने बागपत के पास यमुना पार कर ली, मराठा गुप्तचर पूरी तरह असफल साबित हुए।

कुछ सवाल जिनके जवाब कभी नहीं मिले:

भाऊ का आखिरी पत्र जो पुणे पंहुचा था, वो दिल्ली विजय का समाचार था, उसके बाद भाऊ का कोई भी पत्र पुणे नहीं पंहुचा. हेरानी वाली बात यह है, की लाल किले पर अभी मराठो का कब्ज़ा था, ओर वो पूरी तरह पुणे, सन्देश भेजने के लिए आजाद थे, तो भी दिल्ली -लाल किले से पुणे कोई सन्देश, पेशवा को नहीं भेजा गया, पेशवा को शक तो हुआ, पर फिर भी उन्हें भाऊ पर विश्वाश था, दिसम्बर के महीने मे, पेशवा ने सेना को दिल्ली की ओर चलने का आदेश दिया, अगर समय पर लाल किले से सन्देश पहुच जाता मदद के लिए, तो निशित रूप से पेशवा युद्ध स्तर पर दिल्ली की ओर आते।

अंत मे यही  कहेंगे, जैसे नियति ने पहले ही निर्णय किया था, मराठो का कुंजपुरा विजय के बाद, हर निर्णय गलत साबित हुआ. बहुत बड़ी संख्या मे तीर्थयात्रियो का होना मराठो के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ।

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