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1526 – पानीपत का पहला युद्ध

पानीपत का पहला युद्ध First battle of Panipat in Hindi

पानीपत का पहला युद्ध 1526 ईस्वी में दिल्ली सल्तनत के अंतिम शासक इब्राहिम लोदी व मुगल वंश के संस्थापक बाबर के बीच हुआ था। यह लड़ाई इब्राहिम लोदी के शासन के दौरान ज़हीर-उद-दीन बाबर की हमलावर सेनाओं और दिल्ली सल्तनत के अंतिम साम्राज्य लोदी साम्राज्य के बीच लड़ी गई थी।

मध्य एशिया के आक्रमणकारियों को हमेशा से ही भारत की विशाल संपदा, उपजाऊ भूमि, आसानी से मिलने वाला कर, हमेशा से ही आकर्षित करता रहा था,

समरकंद को दूसरी बार हारने के बाद, बाबर ने 1519 में चिनाब के तट पर पहुँचते ही अपना पूरा ध्यान पंजाब पर लगा दिया, इसके दो कारण थे, पहला समकंद मे लगातार मिलने वाली चुनोती, ओर चारो तरफ नदियो से घिरे पंजाब से मिलने वाला कर

1524 तक, बाबर ने अपने आप को सिर्फ पंजाब तक ही सिमित रखा, उसका उत्तर भारत मे अपना साम्राज्य स्थापित करने की कोई योजना नहीं थी.

इब्राहीम लोदी के सूबेदारों का बाबर को भारत पर आक्रमण का निमंत्रण

इब्राहीम लोदी अपने पिता सिकन्दर लोदी की नवम्बर, 1517 में मृत्यु के उपरांत दिल्ली के सिंहासन पर विराजमान हुआ, इब्राहीम लोदी कभी भी अपने पिता की तरह अपने सरदारों का चहेता नहीं बन पाया,

इब्राहिम लोदी अपने सरदारों पर विश्वास नहीं रखता था। इसी कारण धीरे-धीरे उसके सरदारों का भी इब्राहिम लोदी के प्रति विश्वास डिगने लगा, सभी सरदार इब्राहिम लोदी से पीछा छुडाने का रास्ता धुंडने लगे.

पंजाब के सूबेदार दौलत खाँ लोदी और इब्राहिम लोदी का चाचा आलम खाँ लोदी ने बाबर को भारत पर आक्रमण का निमंत्रण दिया।

दौलत खाँ लोदी से जब बाबर को दिल्ली आक्रमण का सन्देश मिला, जो बाबर ने गंभीरतापूर्वक विचार किया ओर सेना को दिल्ली कुच करने का आदेश दिया.

बाबर का मुकाबला करने के लिए इब्राहिम लोदी भी अपनी सेना के साथ पंजाब की ओर बढ़ा। इसी कड़ी में दोनों पक्षों की सेनाएँ पानीपत के मैदान में आमने-सामने हो गईं।

बाबर ओर इब्राहिम लोदी का सैन्य बल

बाबर की सेना में मैदानी तोपखाने की 20 से 24 टुकड़ियों के साथ लगभग 15-२० हजार लोग थे।

इब्राहिम लोदी की लड़ाकू सेना कुल मिलाकर लगभग 30,000 से 40,000 आदमी थी, साथ ही कम से कम 1000 युद्ध हाथी भी थे। इब्राहिम लोदी की सेना मे भाड़े के सनिंक भी काफी मात्रा मे थे.

युद्ध का दिन: 20 अप्रैल 1926

बाबर की युद्ध रणनीति : तुलुगमा और अराबा

तुलुघमा: इसका मतलब पूरी सेना को विभिन्न इकाइयों में विभाजित करना था, अर्थात। बाएँ, दाएँ और केंद्र।

बाएँ और दाएँ डिवीजनों को आगे और पीछे के डिवीजनों में विभाजित किया गया था।

इसके जरिए छोटी सेना का इस्तेमाल कर दुश्मन को चारों तरफ से घेरा जा सकता था।

अराबा: तब सेंटर फ़ॉरवर्ड डिवीजन को गाड़ियाँ (अराबा) प्रदान की गईं जिन्हें दुश्मन के सामने पंक्तियों में रखा गया था और जानवरों की खाल की रस्सियों से एक दूसरे से बांधा गया था।

अराबा के पीछे, तोपें रखी गई थीं जिन्हें बिना किसी डर के दागा जा सकता था क्योंकि उन्हें बैलगाड़ियों द्वारा ढाल दिया जाता था जो खाल की रस्सियों के कारण उन्हें एक साथ पकड़कर रखती थीं।

जब इब्राहिम की सेना पहुंची, तो उसने पाया कि बाबर की सेना पर हमला करने का रास्ता बहुत संकीर्ण था। इब्राहिम ने संकीर्ण मोर्चे की अनुमति देने के लिए अपनी सेना को तैनात किया, बाबर ने तुलुघमा  तुरंत स्थिति का फायदा उठाते हुए लोदी सेना को घेर लिया। इब्राहिम के सैनिक कार्रवाई करने में असमर्थ रहे और जब लड़ाई उनके खिलाफ हो गई तो वे भाग गए। इब्राहिम लोदी बहादुरी से लड़ा, पर बाबर की युद्ध निति का कोई जवाब नहीं था. इब्राहिम लोदी  मारा गया, युद्ध में 20,000 से अधिक लोदी सैनिक मारे गये।

पानीपत के पहले युद्ध में बाबर की विजय के कारण

इस युद्ध में बाबर द्वारा पहली बार शुरू की गई नई युद्ध रणनीति तुलुगमा और अराबा थी। तुलुगमा में पूरी सेना को लेफ्ट, राईट और केंद्र जैसी तीन इकाइयों में विभाजित किया गया। लेफ्ट और राइट डिवीजनों को आगे फॉरवर्ड और रिवर्स डिवीजनों में विभाजित किया गया था। इसके कारण, एक छोटी सेना चारों ओर से दुश्मन को घेरने में सक्षम हो पाई।

हलाकि बाबर की विजय मे तोपों का महत्व था, पर वास्तव मे यह बाबर का रण कोशल था, जिसने बहुत बड़ी सेना को महज कुछ ही घंटो मे हरा दिया, उस समय तोपों को एक गोला दागने के बाद जल्दी ठंडा करने की कोई विधि नहीं थी. कम से कम १५ मिनट बाद ही दूसरा गोला तोप से दगा जा सकता था, तोपों से अचूक निशाना लगाना भी आसन नहीं था, बाबर ने बहुत ही समझदारी से तोपों का प्रयोग किया, तोपों के गोलों से इतने सैनिक नहीं मरे, पर तोपों की आबाज से हाथियों मे भगदर मच गई, तोप की आवाज इतनी तेज थी कि उसने इब्राहिम लोधी के हाथियों को डरा दिया और लोधी के ही आदमियों को रौंद डाला। तोप की आवाज इतनी तेज थी कि उसने इब्राहिम लोधी के हाथियों को डरा दिया और लोधी के ही आदमियों को रौंद डाला।

बाबर की सेना ने बंदूकों का इस्तेमाल किया जो युद्ध के मैदान में निर्णायक साबित हुई लेकिन सुल्तान के पास किसी भी मैदानी तोपखाने का अभाव था।

इब्राहिम लोदी की सेना बाबर की सेना से बड़ी थी। इब्राहिम लोदी की सेना में हाथी भी उपस्थित थे, लेकिन युद्ध के दौरान इब्राहिम लोदी हाथियों का उपयोग नहीं कर सका, जो उसकी हार के प्रमुख कारणों में से एक कारण भी बना। इस युद्ध में बाबर ने इब्राहिम लोदी को बुरी तरह पराजित किया। इब्राहिम लोदी अपने 20,000 सैनिकों के साथ युद्ध के मैदान में मारा गया

इसके साथ भारत में दिल्ली सल्तनत की समाप्ति और मुगल वंश की स्थापना हुई थी।

First battle of Panipat in Hindi

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