HomeHindi Storyतेनाली रामा : होली उत्सव और महामूर्ख की उपाधि

तेनाली रामा : होली उत्सव और महामूर्ख की उपाधि

Holi Utsav Aur Mahamurkh Ki Upadhi Story In Hindi

विजयनगर की प्रसिद्ध होली

विजयनगर की होली पूरे दक्षिण भारत मे प्रसिद्ध थी, विजयनगर मे इस पर्व को बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता था। महीनों पहले होली की तैयारी शुरू हो जाती थी।

खुद महाराज कृष्णदेव राय भी इस मौके पर होने वाले आयोजनों में बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। इस दिन किसी एक निवासी को महामूर्ख की उपाधि से नवाजा जाता था। साथ ही दस हजार सोने की मुद्राएं भी भेंट की जाती थीं। अपनी सूझ-बूझ और वाकपटुता के कारण तेनालीराम हर साल इस उपाधि को अपने नाम करता था।

तेनालीराम के खिलाफ साजिश

सभी दरबारियों ने मिलकर तय किया कि इस साल महामूर्ख की उपाधि तेनालीराम को नहीं लेने देंगे। दरबारियों ने मिलकर योजना बनाई कि तेनालीराम को चुपके से अधिक मात्रा मे भांग पिला देंगे, ताकि तेनालीराम होली के उत्सव में हिस्सा ही न ले सके।

होली के दिन का कार्यक्रम एक बड़े बगीचे में रखा गया। होली खेलने वाले लोगों के लिए सभी तरह के इंतजाम किए गए, रंग, इत्र से तैयार गुलाल और तरह-तरह के पकवान रखे गए थे।

उत्सव की शुरुआत महाराज ने की, जिसमें महाराज ने कहा कि होली मिलन का त्योहार हैं, दिल से खेले, खाएं-पिएं, साथ ही इस बात का भी ध्यान रखें कि किसी भी दूसरे व्यक्ति को उनसे कोई तकलीफ न हो।

महाराज ने अंत मे कहा, जितना हो सके अपनी हरकतों से अपनी मूर्खता का प्रमाण दें, ताकि वे महामूर्ख की उपाधि हासिल कर सकें।

महाराज की घोषणा के बाद सभी होली खेलने में व्यस्त हो गए और खुलकर मौज-मस्ती करने लगे। लोग नाच रहे थे, रंगों को हवा में उछाल रहे थे। सभी बहुत खुश थे।

तेनालीराम का होश मे आना

पर तेनालीराम तो भंग के नशे मे सो रहे थे, जब भांग का नशा कुछ कम हुआ तो वह भी होली उत्सव में हिस्सा लेने पहुंच गया। तभी तेनालीराम ने देखा, की एक पुरोहित अधिक से अधिक मिठाईयां अपनी झोली में भर रहा था।

तेनालीराम का नशा अब उतार चुका था, उन्हे सब समझ या गया की दरबारिओ ने उन्हे भंग क्यों पिलाई, अब तेनालीराम ने सोचा की अब तो महामूर्ख की उपाधि जितनी ही होगी,

जब पुरोहित की झोली और दोनों जेबें मिठाइयों से भर गईं, तो तेनालीराम ने पानी से भरा एक लोटा लिया और पुरोहित की झोली व जेब में उड़ेल दिया।

फिर क्या था, तेनालीराम के ऐसा करने की वजह से पुरोहित जी बहुत नाराज हो गए। वह तेनालीराम पर जोर-जोर से चिल्लाने लगे और चीखने लगे। पुरोहित के इस तरह चीखने से सभी उनकी ओर देखने लगे और महाराज की नजर भी उन लोगों पर पड़ी।

दरबारिओ को लगा की तेनालीराम अभी भी नशे की वजह से ऐसा कर रहे हैं, तब राजा कृष्णदेव उन लोगों के करीब गए और पुरोहित से उनके चिल्लाने की वजह पूछी। तब पुरोहित ने उन्हें बताया कि कैसे तेनालीराम ने उनकी जेब और झोली में पानी डाल दिया। सभी दरबारी भी तेनालीराम की बुराई करने लगे।

इस पर महाराज तेनालीराम से बहुत नाराज हुए और तेनालीराम से ऐसा करने की वजह पूछी।

तेनालीराम को महामूर्ख की उपाधि

तब तेनालीराम मुस्कुराते हुए बोला, ‘महाराज पुरोहित जी जेबों और झोले ने बहुत मिठाईयां खा ली थीं। मुझे लगा कहीं ज्यादा मीठा खाने से उन्हें बदहजमी न हो जाए, बस इसी वजह से मैंने पुरोहित जी की जेबों और झोले को थोड़ा पानी पिलाया था।’

तेनालीराम की बात सुनकर महाराज जोर-जोर से हंसने लगे और कुछ देर बाद बोले, ‘तुम सबसे बड़े महामूर्ख हो, भला झोला और जेब भी कहीं मिठाईयां खाते हैं क्या?’ दरबारी अभी भी नहीं समझ पाए की तेनालीराम यह सब जान के कर रहे हाँ, वो भी तेनालीराम को मूर्ख कहने लगे।

महाराज की बात सुनकर तेनालीराम को भी हंसी आ गई और उसने पुरोहित की जेबों व झोले को पलट दिया। सारी मिठाईयां घास पर गिर गई। पुरोहित जी भी अपने किए पर बहुत शर्मिंदा हुए। सभी लोग जोर-जोर से हंसने लगे।
तभी तेनालीराम ने महाराज से कहा, की महाराज आज तो पूरे दरबार ने भी मुझे महामूर्ख बोला, अब आप ही कहे आज के दिन का सबसे बड़ा मूर्ख कौन हैं।

तब सभी ने एक स्वर में कहा, ‘तुमने जो अभी हरकत की है, वह महामूर्ख वाली ही है।’ फिर महाराज ने एक बार फिर, महामूर्ख की उपाधि चालक और चतुर तेनालीराम को ही दी। साथ ही उसे दस हजार स्वर्ण मुद्राएं भी दी गई।

कहानी से सीख

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि विपरीत परिस्थिति में भी हमे धैर्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। तथा अपनी बुद्धि पर भरोसा रखना चाहिए।

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